Sunday 31 March 2024

एनडीए के उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ लड़ेंगे इंडी के राजा राम सिंह



एक बार सांसद बन चुके हैं राजग प्रत्याशी 

भाकपा माले प्रत्याशी को राजद व कांग्रेस का समर्थन

सभी तीन चुनाव लड़कर हार चुके हैं राजाराम सिंह

उपेंद्र कश्यप

शनिवार को भाकपा माले ने ओबरा से दो बार विधायक रहे राजाराम सिंह को काराकाट से अपना प्रत्याशी घोषित किया है। इनसे पहले उपेंद्र कुशवाहा राष्ट्रीय लोक मोर्चा के घोषित प्रत्याशी हैं। अब यह लगभग तय हो गया है कि मुख्य भिड़ंत इन्हीं दोनों के बीच होगी। कोई अन्य दल से कोई बड़ा नाम बतौर प्रत्याशी आ जाये तो खेल बदल सकता है। एनडीए और इंडिया दोनों ही गठबंधन के प्रत्याशी एक ही जाति से हैं। दोनों ही गठबंधनों के बीच सीधी टक्कर की संभावना है क्योंकि इतिहास यही बता रहा है। भाजपा नीत राजग के गठबंधन ने राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा को काराकाट से प्रत्याशी बनाया है। जबकि इंडिया गठबंधन ने भाकपा माले के नेता राजा राम सिंह को प्रत्याशी बनाया है। वे ओबरा विधान सभा क्षेत्र से दो बार बतौर भाकपा माले प्रत्याशी 1995 व 2000 में विधायक रहे हैं। पहले काराकाट से तीन बार प्रत्याशी रहे लेकिन तीनों बार हार गए। इस बार उनको राजद व कांग्रेस का भी समर्थन प्राप्त है। इसलिए पूर्व की अपेक्षा काफी मजबूत प्रत्याशी माने जा रहे हैं।



चार वर्ष पूर्व तय था माले के लिए काराकाट

वर्ष 2020 में बिहार विधानसभा का जब चुनाव हुआ तो राजद ने वामपंथी दलों के साथ गठबंधन किया। तब ओबरा सीट राजद के खाते में चली गयी थी। जबकि माले नेता राजराम सिंह यहां से दो बार विधायक रह चुके हैं। तभी यह चर्चा हो गई थी कि ओबरा विधानसभा क्षेत्र से राजाराम सिंह के चुनाव नहीं लड़ने का कारण एक मात्र है कि डा. कांति सिंह ने अपने पुत्र ऋषि कुमार के लिए ओबरा सीट को लेकर विशेष आग्रह किया था। राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया था। ऋषि कुमार चुनाव लड़कर विधायक बन गए। उसी समय चर्चा थी कि यह समझौता सिर्फ इसलिए हुआ है कि लोकसभा के चुनाव में काराकाट सीट राजाराम सिंह को दी जाएगी। यानी जो चर्चा चार साल पहले हुई थी, वह अब जाकर सत्य साबित हुई।



आम चुनाव 2019 में प्रदर्शन

प्रत्याशी- पार्टी- प्राप्त मत- वोट प्रतिशत 

महाबली सिंह - जदयू- 398408- 45.86

उपेंद्र कुशवाहा-रालोसपा-313866- 36.13

राजाराम सिंह-भाकपा माले-24932 2.87


वर्ष 2014 में प्रदर्शन


उपेंद्र कुशवाहा -रालोसपा -338892- 39.01

महाबली सिंह-जदयू-76709- 8.83

संजय केवट-बसपा-45503 -5.24

राजा राम सिंह-भाकपा माले- 32686- 3.76


वर्ष 2009 में प्रदर्शन

महाबली सिंह-जदयू- 196946 - 22.67


राजा राम सिंह-भाकपा माले- 37493- 4.32


Friday 22 March 2024

काराकाट लोकसभा : कुशवाहा लैंड में भगवा-लाल जंग की सजी बिसात

 


कुशवाहा लैंड में मुख्य भिड़ंत कुशवाहों में तय

उपेंद्र कुशवाहा के खिलाफ इंडी के राजा राम प्रत्याशी 

एक बार सांसद बन चुके हैं राजग प्रत्याशी उपेंद्र कुशवाहा 

सभी चुनाव लड़कर जमानत गवां चुके हैं राजाराम सिंह 

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) : काराकाट लोक सभा क्षेत्र से सभी चुनाव में कुशवाहों की जीत हुई है। इस कारण इसे कुशवाहा लैंड कहा जाता है। इस लोकसभा चुनाव में भी कुशवाहों के बीच ही मुख्य भिड़ंत होगी। अभी तक जिन प्रत्याशियों के नाम स्पष्ट हो चुके हैं उससे यह साफ है कि एनडीए और इंडिया दोनों ही गठबंधन के प्रत्याशी कुशवाहा जाति से हैं। दोनों ही गठबंधनों के बीच सीधी टक्कर की संभावना है क्योंकि इतिहास यही बता रहा है। भाजपा नीत राजग के गठबंधन ने राष्ट्रीय लोक मोर्चा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा को काराकाट से प्रत्याशी बनाया है। जबकि इंडिया गठबंधन ने भाकपा माले के नेता राजा राम सिंह को प्रत्याशी बनाया है। 2008 के परिसीमन के वक्त काराकाट वजूद में आया और 2009, 2014 और 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में जीत कुशवाहा जाति के नेताओं की हुई है। 2009 में राजद के डा. कांति सिंह को जदयू के महाबली सिंह ने हराया तो 2014 के चुनाव में राजग का गठबंधन की तरफ से रालोसपा के प्रत्याशी बने उपेंद्र कुशवाहा ने जीत दर्ज की और तब राजद की डा. कांति सिंह चुनाव हार गईं। तब जदयू के महाबली सिंह तीसरा स्थान पर थे। जबकि कुशवाहा जाति के ही राजा राम सिंह भी पांचवे स्थान पर थे। इनसे अधिक मत बसपा प्रत्याशी संजय केवट लाने में सफल रहे थे। फिर 2019 में जब चुनाव हुआ तो राजग की तरफ से जदयू प्रत्याशी महाबली सिंह ने तत्कालीन महागठबंधन का हिस्सा रहे राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के उपेंद्र कुशवाहा को हराया। राजाराम सिंह का प्रदर्शन तीनों ही चुनाव में खराब रहा है। जब तीनों दल भाजपा, जदयू व राजद अलग-अलग थे तब भी। महाबली सिंह से खराब प्रदर्शन राजाराम का रहा है। तीनों चुनाव में राजाराम सिंह अपनी जमानत तक नहीं बचा सके हैं। अब इस बार आमने-सामने की टक्कर में माना जा रहा है कि पूर्व की अपेक्षा राजाराम सिंह का प्रदर्शन बेहतर होना तय है। परिणाम चाहे जो हो।




आम चुनाव 2019 में प्रदर्शन

प्रत्याशी- पार्टी- प्राप्त मत- वोट प्रतिशत 

महाबली सिंह - जदयू- 398408- 45.86

उपेंद्र कुशवाहा-रालोसपा-313866- 36.13

राजाराम सिंह-भाकपा माले-24932 2.87


वर्ष 2014 में प्रदर्शन


उपेंद्र कुशवाहा -रालोसपा -338892- 39.01

महाबली सिंह-जदयू-76709- 8.83

संजय केवट-बसपा-45503 -5.24

राजा राम सिंह-भाकपा माले- 32686- 3.76


वर्ष 2009 में प्रदर्शन

महाबली सिंह-जदयू- 196946 - 20483


राजा राम सिंह-भाकपा माले- 37493- 4.32



कुशवाहा लैंड में कुशवाहा ने किया कुशवाहा का पत्ता साफ

उपेंद्र कुशवाहा के आने से दो बार के सांसद हुए बेटिकट 

वर्ष 2014 में हो चुका है उपेंद्र और महाबली में मुकाबला 


चुनाव जीतने की रणनीति पर काम कर रहे थे महाबली

उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) : भाजपा ने सीट शेयरिंग फार्मूला के तहत काराकाट की सीट राष्ट्रीय लोक मोर्चा को दी है। इस पार्टी से अधिक चर्चा इस बात की है कि भाजपा ने उपेंद्र कुशवाहा को यह सीट दिया है। इससे यह साफ संदेश जा रहा है कि काराकाट लोकसभा सीट से एनडीए के प्रत्याशी उपेंद्र कुशवाहा ही होंगे। लगातार कुशवाहा जाति के व्यक्ति के सांसद बनने से इसे कुशवाहा लैंड कहा माना जाने लगा है। ऐसी स्थिति बनते ही दो बार के सांसद रह चुके जदयू के नेता महाबली सिंह बेटिकट हो गए। जबकि वह लगातार परिश्रम कर रहे थे और चुनाव जीतने की रणनीति पर काम कर रहे थे। सूत्रों के अनुसार महाबली सिंह ने अपने खास कार्यकर्ताओं को सक्रिय भी कर दिया था और चुनावी मैनेजमेंट के सभी आयामों पर काम करने का निर्देश दे रखा था। लगातार इलाके का दौरा कर रहे थे। सब कुछ उस वक्त धराशाई हो गया जब एनडीए में उपेंद्र कुशवाहा के लिए काराकाट सीट देने के लिए जदयू ने अपने सीटिंग सीट से समझौता कर लिया। महत्वपूर्ण है कि उपेंद्र कुशवाहा पहली बार सांसद बने तो काराकाट के मतदाताओं के कारण। वर्ष 2008 में अस्तित्व में आये इस सीट पर जब 2009 में चुनाव हुआ तो राजग गठबंधन से जदयू के प्रत्याशी महाबली सिंह सांसद बने और राजद के कांति सिंह को यहां हार मिली थी। वर्ष 2014 में जब नरेंद्र मोदी भाजपा के प्रधानमंत्री चेहरा घोषित किए गए तो जदयू अलग हो गई और तब यहां से राजग का सहयोगी बनकर राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के उपेंद्र कुशवाहा चुनाव लड़ते हैं। महाबली सिंह जदयू से प्रत्याशी रहते हैं और राजद से डा.कांति सिंह। पहली बार इसी चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा को जीत मिली और वह लोकसभा पहुंच सके। फिर 2019 के चुनाव में रालोसपा राजद के साथ जुड़ गई और दो बार हार के कारण राजद ने डा. कांति सिंह की जगह उपेंद्र कुशवाहा को टिकट दे दिया और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी से वह चुनाव लड़ कर हार जाते हैं। इस चुनाव में महाबली सिंह जदयू के टिकट पर चुनाव लड़ते हैं और चुनाव जीत जाते हैं। अब जब फिर से उपेंद्र कुशवाहा सामने आ गए हैं तो महाबली सिंह का टिकट कट गया। उनकी सारी रणनीति धरी की धरी रह गई। उनका विश्वास टूट गया।




Friday 8 March 2024

औरंगाबाद व काराकाट में महिला नेत्रियों की भूमिका प्रभावी नहीं

 


औरंगाबाद से दो महिला पहुंची हैं संसद 

काराकाट में मंत्री रहते हार चुकी हैं डा.कांति सिंह

सिर्फ ललीता राज लक्ष्मी व श्यामा सिंह बन सकी सांसद


ललिता राज लक्ष्मी


उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) : वर्ष 1914 से विश्व में आठ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। भारत में 1951-52 में पहली लोकसभा और विधानसभा चुनाव हुआ था। तब से अब तक का इतिहास यह बताता है कि महिला जनप्रतिनिधियों की सहभागिता लगभग नगण्य रही है। कभी प्रभावी भूमिका में महिला प्रतिनिधि नहीं दिखी। औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र में दो बार महिलाओं को प्रतिनिधित्व का मौका मिला। लेकिन काराकाट लोकसभा क्षेत्र से मंत्री रहते डा. कांति सिंह चुनाव हार गयीं। यहां से कोई महिला संसद न जा सकी है। ओबरा विधानसभा क्षेत्र का भी यही हाल है। जहां से कभी महिला विधायक नहीं बनी। हालांकि कुसुम यादव ने एक प्रयास किया था। प्राप्त विवरण के अनुसार 1962 में स्वतंत्र पार्टी की ललिता राज लक्ष्मी और 1999 में कांग्रेस से श्यामा सिंह औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र से लोकसभा पहुंचने में कामयाब रही हैं। श्यामा सिंह वर्ष 1989 में पहली बार जब चुनाव लड़ी थी तो उन्हें 212411 मत मिला था लेकिन तब जनता दल के रामनरेश सिंह 239493 मत लाकर चुनाव जीत गए थे। यह वह दौर था जब कहा जाता था कि सत्येंद्र नारायण सिंह किसी को भी खड़ा कर देंगे तो वह चुनाव जीत जाएगा। लेकिन उनकी पुत्रवधू ही यह चुनाव हार गई। वर्ष 1999 में श्यामा सिंह तब जीती जब कांग्रेस के साथ राजद का गठबंधन हुआ और वह 317418 मत लाकर चुनाव जीत गई।


पहली बार आरा और उसके बाद दो बार बिक्रमगंज से सांसद रही डा. कांति सिंह केंद्र में मंत्री रहते हुए वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में बतौर राजद उम्मीदवार काराकाट से चुनाव हार गई। इसके बाद 2014 में भी चुनाव हार गई। वह वर्ष 2004 से 2006 तक केंद्रीय राज्य मंत्री, मानव संसाधन विकास मंत्रालय और 2006 से 2009 तक केंद्रीय राज्य मंत्री, भारी उद्योग रही हैं। इनके अलावा कोई महिला नेत्री काराकाट लोक सभा क्षेत्र से महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब नहीं रही।



बोलते आंकड़े :-


वर्ष - लोकसभा क्षेत्र- विजेता- पार्टी- प्राप्त मत-उप विजेता-पार्टी- प्राप्त मत

1962 -औरंगाबाद-ललिता राज लक्ष्मी -स्वतंत्र पार्टी- 64552-रमेश प्रसाद सिंह-आईएनसी- 54791


1989 -औरंगाबाद- रामनरेश सिंह-जनता दल- 269493-श्यामा सिंह-आईएनसी-212411


1999-श्यामा सिंह-आईएनसी-317418-सुशील कुमार सिंह-जनता दल यू-247002


2009-काराकाट-महाबली सिंह-जद यू-196946-कांति सिंह-राजद-176463


2014-काराकाट-उपेंद्र कुशवाहा                        रालोसपा-338892-कांति सिंह-राजद-233651

(ध्यातव्य:- काराकाट लोक सभा क्षेत्र का गठन व प्रथम चुनाव 2009 में हुआ था)



1985-ओबरा विधान सभा-कुसुम यादव--कांग्रेस-13395 मत


ओबरा से कभी महिला नहीं बन सकी विधायक 


ओबरा विधानसभा क्षेत्र से कभी कोई महिला विधायक नहीं बन स्की। वर्ष 1985 में इंडियन नेशनल कांग्रेस से कुसुम देवी चुनाव लड़ी थी। तब उन्हें 13395 वोट मिला था और तीसरे स्थान पर रही थी। इस चुनाव में लोक दल से रामविलास सिंह चुनाव जीते थे और भाजपा के वीरेंद्र प्रसाद सिंह दूसरे स्थान पर रहे थे। वे 1980 में विधायक बने थे। ओबरा क्षेत्र की राजनीति में कुसुम देवी चर्चित चेहरा रही हैं। इन्हीं के नाम पर तरारी में कुसुम कुसुम यादव कालेज चलता है। इसके अलावा कभी कोई महत्वपूर्ण उपस्थिति महिला प्रतिनिधित्व की ओबरा विधानसभा क्षेत्र में नहीं रही।

श्यामा सिंह

Sunday 4 February 2024

लालकृष्ण आडवाणी से जुड़ी है दाउदनगर की यादें

अयोध्या आंदोलन के दौरान आए थे भखरुआं 

दिया था ओज पूर्ण भाषण, जुटी थी काफी भीड़ 


जब राम मंदिर आंदोलन देश में विस्तार पा रहा था तब लालकृष्ण आडवाणी दाउदनगर भी आ चुके हैं। आज जब उनको भारत रत्न से सम्मानित करने की घोषणा स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सोशल मीडिया हैंडल से की तो उन लोगों को काफी खुशी हुई जिन्होंने तब यहां लालकृष्ण आडवाणी को देखा और सुना था। उनके साथ तब गोविंदाचार्य थे। भखरुआं मोड पर पटना की तरफ से औरंगाबाद की ओर जाने के क्रम में संसा पथ के समीप लोगों को संबोधित किया और उन्हें अयोध्या के लिए आमंत्रित किया था। डाक्टर विश्वकांत पांडेय ने अपनी डायरी में उस घटना को अंकित किया हुआ है। बताया कि वे सितंबर 1991 को यहां आए थे। 


हिंदुत्व को था आडवाणी ने ललकारा 

लाल कृष्ण आडवाणी का दाउदनगर आगमन श्री राम मंदिर निर्माण को आहूत करने के लिए हुआ था। उसके पहले वे बिहार सरकार द्वारा गिरफ्तार किये जा चूके थे। राम धुन और मंदिर वहीं बनाएंगे का संगीत बजते गाड़ी के छत पर श्री आडवाणी ने सम्बोधन किया था। हिंदुत्व को ललकारते हुए अपनी बात रखी थी। तब दाउदनगर बाजार से हिन्दू समाज के बहुतायत लोग एकत्रित हुए थे।



सख्त सुरक्षा व्यवस्था और काफी भीड़



राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े सिद्धेश्वर प्रसाद बताते हैं कि तब भखरुआं में काफी भीड़ जुटी थी। कई वाहनों में बड़ी संख्या में पुलिस बल मौजूद थे। बहुत कम समय तक संबोधित किया लोगों को और फिर औरंगाबाद के लिए चले गए। ओबरा में भी संबोधित किया था लेकिन औरंगाबाद में बहुत भव्य कार्यक्रम तब हुआ था। पूरा वातावरण भक्तिमय व राममय बन गया था।



काफी देर तक प्रतीक्षा करते रहे लोग



आरएसएस से संबद्ध सुनील केशरी बताते हैं कि श्री आडवाणी के आने का समय 11 बजे तय था। किंतु लगभग तीन बजे आये थे। भारी संख्या में भीड़ थी। उनको सुनने के लिए प्रतीक्षा करती रही भीड़। लोग अटल आडवाणी जिंदाबाद, भारत मां के तीन धरोहर अटल आडवाणी मुरली मनोहर, वंदे मातरम, भारत माता की जय का नारा लगाया रहे थे।  

Tuesday 30 January 2024

बिहार में सत्ता संघर्ष से राजनीतिक कार्यकर्ताओं को मिली सबक

मन आहत, विश्वसनीयता का बढ़ा संकट

जनता, कार्यकर्ता को मिली नीतीश, लालू, नमो से सीख 

नैतिकता, सिद्धान्त, आदर्श पर क्या सोचते हैं कार्यकर्ता


बिहार में सत्ता का संघर्ष कई प्रश्न खड़े कर गया है। तमाम प्रश्नों के बीच सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि जो कुछ बिहार की राजनीति में घटित हुआ उससे आम जनता और जमीनी स्तर के राजनीतिक कार्यकर्ताओं को सीखने के लिए क्या मिला। हर घटना कुछ ना कुछ सिखाती है, तो स्वाभाविक है कि जब राजनीति की बड़ी घटना हो रही हो तो राजनीति में रुचि लेने वाले कार्यकर्ताओं को भी सीखने के लिए कुछ ना कुछ मिला। सबसे बड़ा संकट विश्वसनीयता का दिख रहा है। भरोसे की समस्या खड़ी हो गई है। राजनीति में नैतिकता, सिद्धांत, आदर्श को लेकर कार्यकर्ता क्या सोचते हैं। नरेंद्र मोदी हों या नीतीश कुमार और लालू यादव इन तीनों से सीखने को क्या मिला। यही जानने का प्रयास दैनिक जागरण ने किया।



पलटना, समेटना व अवसरवादिता सीखा 



पूर्व विधायक वीरेंद्र कुमार सिंहा के पुत्र पूर्व मुखिया कुणाल प्रताप ने कहा कि नीतीश कुमार ने पलटना, लालू ने समेटना और नरेंद्र मोदी ने अवसरवादिता सीखाया। सिखाया कि पलटो ऐसा कि जलो नहीं। जो कुछ मिल रहा है उसको समेटो और अवसर मिले तो सिद्धांत हटाओ कुर्सी हथियाओ। जब शीर्ष नेताओं के पास ही सिद्धांत नहीं है तो गांव में रहने वाले कार्यकर्ता सैद्धांतिक कैसे हो सकते हैं। आज चुनाव पैरवी, पावर और पैसा का बनकर रह गया है। इसीलिए आम लोग इस तीनों को पाने में लगे हुए हैं।



कोई भरोसा न कर सकेगा अब 



कांग्रेस प्रखंड अध्यक्ष राजेश्वर सिंह कहते हैं कि विश्वास खत्म हो रहा है। राजनीतिक दलों और कार्यकर्ताओं पर कोई अब भरोसा नहीं करेगा। विश्वास का संकट है। बार-बार झूठ बोलने से ऐसी स्थिति बन गई है कि अगर नेता सत्य भी बोले तो उस पर कोई भरोसा नहीं करेगा।



नेताओं से उम्मीद खुद पर कुल्हाड़ी चलाना 



नगर पंचायत के मुख्य पार्षद रहे भाजपा के नेता परमानंद पासवान ने कहा कि नेताओं के दिल, दिमाग और आत्मा में आदर्श, नैतिकता, सुचिता की कोई जगह नहीं बची है। जनता को ही नैतिकता का पाठ पढ़ाना होगा इन नेताओं को। नेताओं से उम्मीद रखना अपने पैर पर खुद ही कुल्हाड़ी मारने के बराबर है। जरूरत इस बात की है कि जनता बुद्धिजीवी बने और सही का चयन करे।


कार्यकर्ताओं के मान सम्मान से खिलवाड़ 



राजद प्रखंड अध्यक्ष देवेंद्र सिंह कहते हैं कि राजनीतिक दलों में कार्यकर्ताओं का मान सम्मान का ख्याल नहीं रखा जाता। एक तपके से सामंजस्य बैठा नहीं कि उसे छोड़कर दूसरे से बनाने की स्थिति आ जाती है। कार्यकर्ताओं की राय नहीं ली जाती है। राजनीतिक कार्यकर्ता पेंडुलम की तरह बना कर छोड़ दिए गए हैं। कभी इस पहलू कभी उसे पहलू डोलते रहिए। राजनीतिक दलों और नेताओं को लेकर विश्वास का भारी संकट है। सत्ता के लिए किसी से गठबंधन करने की प्रवृत्ति खत्म होनी चाहिए।





Tuesday 23 January 2024

राजनीति की भट्ठी में युवाओं को झोंकने की साजिश

इस तरह की हरकतों से सांप्रदायिक तनाव की बन सकती है स्थिति

पुलिस प्रशासन के पूछने के बावजूद क्यों नहीं बताई गई की निकलेगा जुलूस 


 उपेंद्र कश्यप, दाउदनगर (औरंगाबाद) : क्या चुनावी राजनीति के लिए युवाओं को राजनीति की भट्टी में धकेला जा रहा है। क्या राजनीतिक लाभ के लिए सांप्रदायिक तनाव पैदा करने की कोशिश की जा रही है। क्या पुलिस प्रशासन से झूठ बोलकर नव युवकों को राजनीतिक लाभ के लिए मोहरा बनाया जा रहा है। जब पुलिस प्रशासन ने पूछा था कि अगर जुलूस निकालना चाहते हैं तो जानकारी दें तो फिर शांति समिति की बैठक में किसी ने यह क्यों नहीं कहा कि जुलूस निकाला जाएगा। सोमवार की रात अचानक लगभग 15 फीट ऊंचा डीजे के साथ जुलूस कैसे निकाला गया। क्या यह बिना योजना संभव हो सकता है। प्रश्न यह भी है कि हनुमान मंदिर प्रबंधन समिति को यह पता क्यों नहीं था कि शहर में जुलूस निकाला जाएगा। कई प्रश्न सोमवार की रात की घटना से उठे हैं। अचानक से लगभग 1000 युवा सड़क पर डीजे बांधकर कैसे उतर जाएंगे। यह और बात है कि उसके निकाले जाने की सूचना छुपाने की कोशिश की गई। यह भी एक योजना दिखती है। डीजे कसेरा टोली की तरफ से मुख्य पथ पर आता है और हनुमान मंदिर के पास बने गेट की ऊंचाई कम होने के कारण मामला फंस जाता है। प्राप्त जानकारी के अनुसार यहां प्रशिक्षु डीएसपी चंदन कुमार बार-बार अनुरोध करते हैं कि बना अनुमति के आप लोगों ने जुलूस निकाला है, पीछे हटिये। पुलिस प्रशासन ने शांति समिति की बैठक में पूछा था कि क्या जुलूस निकाला जाएगा जब प्रशासन अनुमति देने के लिए तैयार था तो फिर जुलूस निकालने की अनुमति क्यों नहीं ली गई। आखिर इस घटना के पीछे वह कौन सा व्यक्ति या समूह है जो युवाओं को सांप्रदायिक और राजनीतिक भट्टी में धकेल रहा है। लोगों को भी समझने की जरूरत है कि उनका राजनीतिक और धार्मिक इस्तेमाल उनके करियर को तबाह कर सकता है। इस तरह की घटनाओं से युवाओं को सबक लेनी चाहिए कि कहीं ना कहीं उनका राजनीतिक इस्तेमाल इसलिए किया जा रहा है कि किसी को लाभ हो। ऐसी कोशिश पर अगर विराम नहीं लगता है, पुलिस प्रशासन चिन्हित करके ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करती है, तो फिर हसपुरा थाना क्षेत्र जैसी स्थिति हो जाएगी और यह दाउदनगर के लिए सबसे बड़ा दुर्भाग्य का दिन होगा। किसी भी परिस्थिति में सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने और धार्मिक उन्माद फैलाने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए। क्या पुलिस आरोपितों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करेगी।


बिना अनुमति निकाला जुलूस, किया पुलिस पर पथराव


10 नामजद समेत 12 के खिलाफ प्राथमिकी 

पुलिस ने जप्त किया डीजे का सारा सामान  

शहर में बिना अनुमति जुलूस निकालने, हंगामा करने और पुलिस पर पथराव करने के मामले में अंचल अधिकारी नरेंद्र कुमार सिंह द्वारा प्राथमिकी कराई गई है। डीजे और उसके सभी उपकरण, वाहन व जेनरेटर जब्त कर लिया गया है। इस मामले में 10 नामजद समेत 12 आरोपित बनाये गए हैं। प्राथमिकी आवेदन में कहा गया है कि अंचल अधिकारी प्रशिक्षु डीएसपी चंदन कुमार ठाकुर, थाना अध्यक्ष अंजनी कुमार, अपर थाना अध्यक्ष सुनील कुमार पुलिस बल के साथ निकले तो छत्तर दरवाजा के पास कुछ लोग लाठी डंडा से लैस होकर डीजे के साथ दिखे। बहुत तेज आवाज में डीजे बजा रहे थे। डीजे बजाने की उन्होंने अनुमति प्राप्त नहीं की थी। इन बीच बिजली कट गई। अंधेरे का लाभ उठाकर जुलूस में शामिल लोग पुलिस पर पत्थरबाजी करने लगे। कुछ पुलिस कर्मियों को हल्की चोट आई है। अंधेरा का लाभ उठाकर सभी भाग गए। डीजे, वाहन और जनरेटर वाले सभी भाग गए। बाद में पूछताछ पर पता चला कि अमृत बिगहा स्थित काली मंदिर रोड देवी स्थान के पास डीजे छुपा कर रखा गया है। इस सूचना पर पुलिस वहां पहुंचे तो डीजे और उसके सभी उपकरण को पुलिस ने जप्त कर लिया। इस मामले में डीजे के संचालक विजय कुमार, वाहन मालिक व उसके चालक के अलावा शहर के नौ व्यक्तियों को नामजद आरोपित बनाया गया है। पुलिस ने नामजद आरोपितों के नाम बताने से परहेज किया।